ghazal se meri pehli mulakat

ज़िन्दगी से समझौता नही होता 
ऐसे में कोई करिश्मा नही होता 

दूरियां हैं क्यू रही ज़िन्दगी से 
क्यूँ कम ये फासला नही होता 

चलते तो बहुत हैं इस राह
पर हर कोई खुदा नहीं होता

हर वक्त बना है ख्याल वो 
मुझ से क्यूँ वो जुदा नहीं होता 

ज़िन्दगी खुद आए तेरे पास
मगर ऐसा सदा नहीं होता

शमशान मे जा रही हो भीड़ 
मगर वो काफिला नहीं होता 

तनहाई है मेरे आस पास
लोगो का काफिला नही होता

रो रो ज़िन्दगी जीओ अपनी 
ऐसे मज़ा मज़ा नहीं होता 

अगस्त २३ , १९९३

बज़म   ए  बिन्की  


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