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माँ जिसकी कोई परिभाषा नही होती जो शायद क्या , सच ही प्रेम से भी प्यार होने की बात हे माँ जहा रूहों की रूहों से बात होती है वहा माँ का ज़िर्क आता है माँ क्या है माँ है हृदयों की गहराइयाँ जहां डूब आदमी प्रेम हो जाता है फिर वही ध्यान की बातें  होती हैं और फिर वही ध्यान हो जाता हैं

ghazal se meri pehli mulakat

ज़िन्दगी से समझौता नही होता  ऐसे में कोई करिश्मा नही होता  दूरियां हैं क्यू रही ज़िन्दगी से  क्यूँ कम ये फासला नही होता  चलते तो बहुत हैं इस राह पर हर कोई खुदा नहीं होता हर वक्त बना है ख्याल वो  मुझ से क्यूँ वो जुदा नहीं होता  ज़िन्दगी खुद आए तेरे पास मगर ऐसा सदा नहीं होता शमशान मे जा रही हो भीड़  मगर वो काफिला नहीं होता  तनहाई है मेरे आस पास लोगो का काफिला नही होता रो रो ज़िन्दगी जीओ अपनी  ऐसे मज़ा मज़ा नहीं होता  अगस्त २३ , १९९३ बज़म   ए  बिन्की